Tuesday 24 April 2018

"ये बच्चे आते कहां से हैं?"


मैं पारो की जगह होती तो उसे एक कसकर थप्पड़ मारती।
पर दीदी वो लड़का तो पारो को पंसद करता था, और आपने बताया कि वो भी उसे पसंद करती थी तो किस करने में क्या खराबी है? ”

पानीपत के हाली अपना स्कूल के किशोर-किशोरियों के साथ आयोजित जेंडर, यौनिकता और प्रजनन स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत हमारी चौथी वर्कशॉप प्यार, सेक्स और सहमति पर आधारित रही।
किशोरावस्था उम्र का वो पड़ाव होता है जहां तरह तरह के सवाल मन में उठते हैं, कई बार फिल्मों, विज्ञापनों और आस पड़ोस में उन्हें कई चीजें देखने को मिलती है, वो उससे समझने की कोशिश करते हैं, कई बार सवाल भी पूछते हैं, लेकिन अधिकतर बार माता-पिता इन सवालों को दर किनार कर देते हैं। इस उम्र में एक दूसरे के प्रति आकर्षण भी बढ़ता है, लड़के और लड़कियों एक दूसरे के प्रति दोस्ती के भाव से आगे बढ़कर भी सोचते हैं, ऐसे में बहुत जरुरी है कि उनके पास सही कदम उठाने के लिए पूरी जानकारी हो। 

इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए इस सत्र को बनाया गया है। एक मनोरंजक खेल के साथ सत्र की शुरुआत की गई।



पहली गतिविधि में 13 साल की पारो की कहानी सुनाई गई जहां वो एक लड़के के प्रति आकर्षित होती है और एक दिन जब ट्यूशन क्लास में कोई नहीं होता तो वो लड़का उसे किस कर लेता है। इस कहानी के तहत प्रतिभागियों से पूछा गया कि अगर वो पारो की जगह होते तो क्या करते

उस लड़के का किस करना सही नहीं था। मैं मानता हूं तो एक दूसरे को पंसद करते हैं लेकिन उसने पारो से तो पूछा ही नहीं कि वो किस करना चाहती है या नहीं। इसमें उसकी मर्जी है या नहीं

मैं पारो की जगह होती तो एकदम से टीचर को बता देती। मेरी मर्जी के बिना किस करना गलत है।

पारो का तो पता नहीं लेकिन अगर मैं लड़का होता तो ऐसा कभी नहीं करता। माता-पिता क्या कहेंगे, और अगर प्रिंसिपल को पता चल गया तो वो तो स्कूल से ही निकाल देंगे। और मुझे तो सच में पता ही नहीं कि पारो मुझे पसंद भी करती है या नहीं

दीदी मैं पारो होती तो उसे डांटती और साथ में समझाती भी कि ऐसे किसी को किस करना सही नहीं है। भले ही हम एक दूसरे को पसंद करते हैं पर उसकी भी एक सीमा होनी चाहिए। हमारे माता-पिता क्या सोंचेगे

ये सभी जवाब एक दूसरे से काफी अलग थे, इनमें कई अहम बिंदू सामने आए- मसलन एक लड़के और लड़की के एक दूसरे के प्रति आकर्षण को हमेशा गलत समझा जाता है, दूसरा समाज के साथ साथ हमारे खुद के दोस्त या सहेलियां हमें समझने की वजह हमें समाज की ही आवाज़ सुनाते हैं, तीसरा और सबसे अहम सहमति- अगर दो लोग एक दूसरे को पसंद भी करते हैं तो कोई भी कदम आगे उठाने के लिए दोनों की सहमति बहुत जरुरी है।

पारो की कहानी के बाद प्रतिभागियों से कुछ सवाल पूछे गए- जैसे क्या उन्होंने कभी सोचा है कि बच्चे कहां से आते हैं? कुछ ने कहा- कि बच्चे भगवान की देन होते हैं, ऐसा मम्मी ने कहा है, तो दूसरे ने कहा कि जब दो लोग किस करते हैं तो बच्चे होते हैं (ऐसा फिल्मों में देखा है।) आदि। 

ये पूछने पर क्या उन्होंने सेक्स शब्द सुना है? इस बार एकदम खामोशी छा गई मानो मातम फैल गया हो। एक लड़के ने हाथ उठाते हुए कहा- मैं एक बार अपने घर जा रहा था, तो पड़ोस में दो लोगों ने फोन पर एक वीडियो देखते हुए इस शब्द को कहा था। फिर धीरे धीरे कुछ और प्रतिभागियों ने ऐसे ही वाकए सांझा किए जहां उन्होंने कुछ व्यस्क लोगों की बातचीत में इस शब्द को सुना है, जब वो बहुत धीमी आवाज़ में कुछ बात करते हैं।


सेक्स नाम के भूत की सच्चाई सामने लाने के लिए हमने दो शॉर्ट फिल्में दिखाई जहां एक 10 साल का बच्चा अपने पापा से ये बच्चे कहां से आते हैं और ये कंडोम क्या होता हैपूछता है और फिर उसके पिता अलग अलग चीजों के जरिए यौनांगों, सेक्स और कंडोम के बारे में उसे बताते हैं। फिल्म के बाद हमने सवाल और जवाबों के जरिए यौन को समझने की कोशिश की।


मज़ेदार बात ये है कि एक 11 साल का प्रतिभागी जो पहली बार सत्र में आया था (क्योंकि पहले सत्र में वो बीमार था) उसने सबसे पहले हाथ उठाकर विस्तार से सेक्स क्या होता है पर बातचीत की। इस मुद्दे पर जानकारी होना और इस शब्द को सहजता से बोल पाना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है, ऐसा इसलिए भी क्योंकि अक्सर यौनांगों और सेक्स शब्द को बोलने से व्यस्क तक परहेज करते हैं। और कहीं न कहीं इसी झिझक की वजह से किशोर ऐसे कदम उठाते हैं जिनकी वजह से उन्हें अपने आने वाले समय में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। लेकिन यहां प्रतिभागी बिना किसी झिझक, और शर्म के इन बातों पर न केवल समझ बना रहे थे पर अपने वर्तमान और भविष्य के सवालों के लिए भी तैयार हो रहे थे।  

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