Sunday 22 April 2018

“मेरा शरीर बदलता क्यों है?”


शारीरिक तौर पर बढ़ने के साथ कई समस्याएं सामने आती है। हम कुछ-कुछ गंदी हरकते करने लगते हैं। हम लड़कियों को अलग नज़र से देखने लगते हैं।

पानीपत के हाली अपना स्कूलके किशोर-किशोरियों के साथ दूसरा सत्र मेरा शरीर बदलता क्यों है?” पर आधारित रहा। किशोरावस्था में कई तरह के बदलाव होते हैं जिसमें सबसे जरुरी और प्रभावित करने करने वाले शारीरिक बदलाव होते हैं क्योंकि इन्हीं बदलावों की वजह से किशोर-किशोरियां कन्फूयज़ होते हैं, घबरा जाते हैं, और कई बार भ्रमित हो जाते हैं। ऐसे में बेहद जरुरी है कि ये शारीरिक बदलाव क्या हैं, क्यों होते हैं और हम इन बदलावों को लेकर कैसे सहज हो सकते हैं पर बातचीत करें।

सत्र की शुरुआत हमने सिक्के के खेल से की, यहां एक अलग बात जो देखने को मिली वो ये कि क्योंकि इस खेल में काफी भागदौड़ होती है तो अक्सर लड़के बहुत फुर्ती दिखाते हैं और खेल जीत जाते हैं पर यहां लड़कियों की फुर्ती देखने लायक थी। मुझे काफी अच्छा लगा क्योंकि ये प्रतिभागी अभी भी सामाजिक ढांचों की पकड़ से कुछ हद तक अछूते हैं। पहली गतिविधि में प्रतिभागियों को 5 समूहों में बांटा गया और उन्हें कुछ सवालों पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया, इस चर्चा को फिर उन्हें बड़े समूह के साथ सांझा करने को कहा गया।




जब मैं काफी छोटी थी और अपनी मां के साथ कहीं जा रही थी, तो एक औरत ने मेरे बारे में पूछा तब मेरी मां ने बताया कि ये मेरी लड़की है


एक दिन जब मैं और मेरी मां बाज़ार कपड़े खरीदने के लिए गए, तो एक दुकान पर मेरी मां ने कहा कि तू लड़का है इसलिए मैं तेरे लिए पैंट शर्ट खरीद रही हूं।




मैंने एक दुकान पर पैंट-शर्ट टंगा देखा, तो मैंने उसे खरीदने की जिद्द की और फिर मैं रोने लगी। मेरी मां ने मुझे बताया कि मैं लड़की हूं इसलिए मुझे पैंट शर्ट नहीं पहनना चाहिए।


जब भी हम कहीं जाते हैं, या कोई हमारे घर में आता है तब माता-पिता दूसरे लोगों को बताते हैं कि हम लड़के हैं या लड़की। हमें सीधे सीधे किसी ने नहीं बताया इसलिए हमें खुद पता चला।


जब मुझे पता चला कि मैं लड़का हूं तो मुझे बहुत अच्छा लगा। लेकिन जब घर में लड़कियों के साथ बहुत अच्छा व्यवहार होता है, उन्हें घर में कुछ भी करने दिया जाता है तो लगता है कि काश लड़की होता है तो अच्छा होता।



जैसे कि मैं लड़की हूं तो कभी कभी इस बात से उदास हो जाती हूं पर फिर मैं अपने परिवार की लाड़ली भी हूं तो फिर ठीक लगता है।


मुझे तो बेहद खुशी हुई कि मैं लड़का हूं। मैं कुछ भी कर सकता हूं, कहीं भी जा सकता हूं, कहीं भी घूम सकता हूं।


जब मुझे पता चला कि मैं एक लड़की हूं तो मुझे अपने आप पर बेहद गर्व महसूस हुआ क्योंकि मुझे पता है कि मैं अपने परिवार की मदद कर पाउंगी


इस चर्चा से एक और अहम बात सामने आई कि सभी प्रतिभागियों को अमूमन 3-4 साल की उम्र में इस बात की समझ बन गई थी कि वो लड़के हैं या लड़की।

सत्र की दूसरी अहम गतिविधि बॉडी मैंपिंग थी जहां 4 ग्रुप बनाए गए- दो ग्रुप जिसमें सभी लड़के रहे और दो ग्रुप जिसमें केवल लड़कियां थी। इस सभी को बॉडी मैप बनाकर कुछ सवालों पर चर्चा करने को कहा गया, जिसके बाद चर्चा के अहम बिंदू बड़े समूह में सांझा करने को आमंत्रित किया गया।


उन सवालों के कुछ अहम जवाब यूं रहे-

बड़े होने के कई फायदे हैं जैसे हम कहीं भी जा सकते हैं, कोई हमें रोकेगा नहीं। हम बड़े लोगों के साथ बैठ सकते हैं।

बड़े होने पर हम घूम सकते हैं, मनपसंद के कपड़े पहन सकते हैं। हममें सोचने, समझने की क्षमता बढ़ जाती है, पता चलता है कि क्या अच्छा या बुरा है।

बड़े होने की वजह से हम ताकतवर हो जाते है, भारी सामान उठा पाते हैं, साथ ही हमारे दिमाग का विकास भी होता है।


शारीरिक तौर पर बढ़ने की बुरी बातें या समस्याएं-

बड़े होने पर लोग नशा और कई बुरी आदतों में फंस जाते हैं। जानवरों जैसा व्यवहार करते हैं। मारपीट करते हैं और परिवारवालों को भी परेशान करते हैं

बड़े होने पर हम छोटे बच्चों की तरह खेल नहीं सकते, अगर हम लड़की हैं तो हमारे घूमने और आने जाने पर, लड़कों से बातचीत करने पर रोक लग जाती है। रात छोड़िए शाम तक भी हम घर के बाहर नहीं रह सकते।


शारीरिक तौर पर बड़े होने की सबसे बुरी बात महावारी होना है, इसके साथ शरीर में अलग अलग दर्द होते हैं जिसके बारे में हम दूसरों से न बात कर सकते हैं और नाही सलाह ले सकते हैं।

बड़े होने पर हम टाइट कपड़े नहीं पहन सकते। बाहर जाने पर डर लगता है क्योंकि लड़के छेड़ते हैं।

शारीरिक बदलावों की वजह से हम अलग दिखने लगते हैं, सबकी नज़र हमपर जाने लगती है, लोग कुछ कुछ बातें बनाने लगते हैं।


इस चर्चा से कई अहम और सोचने वाली बातें सामने आई कि कैसे शारीरिक बदलाव किशोर-किशोरियों को परेशान करते हैं क्योंकि इस बारे में उनके पास जानकारी नहीं होती, साथ ही इन बदलावों के साथ साथ उनपर सामाजिक बंदिशें लगने लगती हैं और वो बस कुंठित होकर रह जाते हैं। बॉडी मैंपिंग के दौरान बहुत मुश्किल है, बहुत शर्म, दबी-दबी हंसी, बहुत प्रोत्साहित करते हुए उन्होंने अपने यौंनांगों को तो बना लिया पर किसी एक प्रतिभागी को भी अपने यौनांग का नाम नहीं पता था, जो असल में काफी गलत हैं। खैर जब प्रतिभागियों ने अपने बॉडी मैंप को प्रस्तुत किया तो खुलकर बातचीत की जो अपने आप में बदलाव के प्रति पहला कदम था। 



इसके बाद हमने एक पॉवरपांइट प्रेजेंटेशन के जरिए शारीरिक बदलाव और यौनांगों के बारे में विस्तार से चर्चा की, और साथ ही उनके सवालों के जवाब भी दिए। सत्र के आखिर तक शर्म से जो हंसी छुप रही थी वो अब उनकी आंखों में जागरुकता की लौ की तरह दिख रही थी। मैं हमेशा की तरह उत्सुक और खुश थी क्योंकि ये सत्र समाज की काफी परतों को हिला देता है, और प्रतिभागियों के लिए आगे का रास्ता और रोशनी से भर देता है।

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