Friday 20 April 2018

'अपनी पहचान' को समझते हाली अपना स्कूल के किशोर-किशोरियां :-)


मैं लीडर बनना चाहती हूं

एक 12 साल की किशोरी के मुंह से निकले इन शब्दों से मैं हैरान रह गई थी। किसी भी साधारण किशोरी की तरह दिखने वाली ये प्रतिभागी कई मायनों में अलग थी, क्योंकि उसकी आवाज़ बेहद बुलंद थी, चेहरे पर एक अलग ही आत्मविश्वास था और उसका हर शब्द उसकी आकंशाओं की डोर को आसमान में बहुत ऊपर ले जाने के लिए बेकरार था। पानीपत के हाली अपना स्कूल में जब साहस को जेंडर, यौनिकता और प्रजनन स्वास्थ्य पाठ्यक्रम को क्रिन्यावित करने के लिए आमंत्रित किया गया थ तब मैं काफी असमंजस में थी। 



हरियाणा का नाम सुनते ही महिला-पुरुष सेक्स रेशियो दिमाग में आता है, उसके बाद जेंडर आधारित हिंसा के ढेरों केस, लड़कियों के लिए बेहद असुरक्षित जगह, मन में एक अलग सा डर उसपर खुद के पूर्वानुमान कि क्या हम जिन मुद्दों की समझ बनाना चाहते हैं उसे ये बच्चे समझ पाएंगे, क्या ये उनके परिपेक्ष्य के अनुकूल है? आदि। लेकिन इस अनूठे स्कूल में कदम रखते ही वो सारे पूर्वानुमान मानो रफ्फू चक्कर हो गए। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस प्यार और सोच से इस स्कूल की संक्षरचना की गई वो आम इंसानों की धारणाओं से कोसो दूर है। यहां पढ़ने वाले बच्चे आसपास की बस्तियों से आते हैं- ज्यादातर वो जिनके समुदाय (धर्म, जाति के आधार से) हाशिए पर है जो लगातार समाज की प्रताड़ना की मार झेल रहे हैं। इस स्कूल ने उन्हें न केवल पढ़ने का मौका दिया है बल्कि शिक्षा का वो दीया प्रज्जवलित किया है तो आजकल के पब्लिक स्कूल करने में असमर्थ हैं। 


खैर! साहस के जेंडर, यौनिकता और प्रजनन स्वास्थ्य पाठ्यक्रम के अंतर्गत पहली वर्कशॉप मैं कौन हूंपर आधारित रही। कार्यशाला की शुरुआत में हमने आपसी सहमति से कुछ नियम बनाए ताकि हम प्रतिभागियों के साथ मिलकर एक सुरक्षित जगह का निर्माण कर पाएं जहां वो खुलकर अपनी मन की बातें, अपने डर, अपनी आकंशाओं और अपने सवालों को एक दूसरे के साथ सांझा कर पाएं।
पहली एक्टिविटी में हमने प्रतिभागियों को कुछ सवालों को भरने के लिए आमंत्रित किया जो उनसे संबंधित थे मसलन उनका सबसे करीबी दोस्त कौन है, उन्हें खाने में सबसे ज्यादा क्या पसंद है, ऐसी कोई बहादुरी का काम जो उन्होंने किया है इत्यादि। पहली बार अपने से जुड़े सवालों पर सोचते हुए जब प्रतिभागी लिख रहे थे तो कुछ के चेहरे पर हंसी थी, तो कुछ अचंभित थे, तो कुछ परेशान।


मैंने पहली बार अपने बारे में इतना सोचा है। कभी ऐसा करना होगा ये पता ही नहीं था

मुझे तो अपने बारे में लिखकर बहुत मज़ा आया


इसके बाद प्रतिभागियों को खुद का एक पहचान पत्र बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जहां स्कूल के पहचान पत्र से अलग एक अनूठे तरीके से अपनी पहचान को समझना था। इसमें उन्हें अपने से जुड़े वो शब्द या वाक्य लिखने थे जो केवल उनसे संबंधित रखते हैं। इसके बाद अगर दो लोगों के पहचान पत्र की एक बात भी मिलती हो तो वो एक साथ खड़े होंगे। इस गतिविधि की एक बात जो मुझे काफी रोचक लगी वो ये कि यहां तकरीबन हर प्रतिभागी ने लड़का या लड़की होना एक पहचान के तौर पर लिखा था, पर जब समूह बनाने की बात आई तो उन्होंने ऐसे शख्स को चुना जिसके सपने, वो भविष्य में क्या बनना चाहते है या फिर उन्हें क्या-क्या करना पसंद है। 


दूसरी बात तो काफी अलग रही वो ये कि यहां केवल लड़कियां या फिर लड़के जोड़ीदार नहीं बने बल्कि एक लड़के और लड़की ने भी जोड़ी बनाई, ऐसा मैंने पहले इस गतिविधि में नहीं देखा था। पहचान पत्र पढ़ते समय भी कई मज़ेदार बातें सामने आई-



एक लड़के ने कहा, मुझे खाना बनना बेहद पंसद है
एक लड़की ने कहा, मुझे खाना बनाना बिलकुल पसंद नहीं है
जबकि एक लड़के और लड़की ने कहा,मुझे लड़ाई करना बेहद पसंद है। प्रोफेशनल तरीके की लड़ाई
इन प्रतिभागियों की समझ और जोश देखते ही बन रहा था, वो अपनी पहचान और उससे जुड़ी बातें कहने में काफी मशरुफ हो गए थे। इस एक्टिविटी के बाद हमारे जीवन में हमारी पहचान अलग अलग पड़ावों पर कैसे बदलती रहती है उसपर समझ बनाई।



पहचान, हमारा जीवन और किशोरावस्था आपस में कैसे जुड़े हुए हैं इसपर बातचीत करने के लिए हमने प्रतिभागियों को दो अलग-अलग समूहों में बांटा और उन्हें जब महात्मा गांधी और रानी लक्ष्मीबाई उनकी उम्र यानि किशोरावस्था में थे उससे जुड़ी अलग अलग किस्से सुनाए। इन कहानियों को सुनने का मकसद एक ही था कि वो किशोरावस्था की अहमियत समझ पाए और जान पाएं कि इस दौरान वो जो चीजें सीखेंगे और मूल्यों को अपने जीवन में ढालेंगे वो उनका भविष्य का रास्ता बनाने में मददगार साबित होंगी। 


अक्सर देखा जाता है कि लोग एक दूसरे को उनकी कमियां बताने में, उनमें क्या सुधार हो सकता है या फिर उनमें बदलाव करने की सलाह देते नजर आते हैं, काफी कम बार ऐसा होता है जब कोई छोटी-छोटी बातों या खूबियों को लेकर सच्चे दिल से तारीफ करता हो। इसी को ध्यान में रखते हुए हमने सभी प्रतिभागियों को एक एक करके अपने बारे में एक खूबी बड़े समूह में सांझा करने के लिए आमंत्रित किया। गौर करने वाली बात ये रही की प्रतिभागियों के लिए अपने बारे में एक अच्छी बात बोलना काफी मुश्किल साबित हो रहा था, लेकिन धीरे धीरे कुछ बेहद मज़ेदार बातें जैसे मैं गणित अच्छा पढ़ा सकता हूं, मुझे क्रिकेट खेलना पंसद है, मैं कहानियां सुनाने में माहिर हूं, मुझे कविता लिखना पसंद है, मुझे गाना गाना बेहद अच्छा लगता हैइत्यादि सामने आई।



सत्र की आखिरी गतिविधि में प्रतिभागियों को जोड़े में बांटा गया जहां वो एक ऐसे शख्स के साथ खड़े थे जिन्हें वो नहीं के बराबर जानते थे, इसमें उन्हें एक दूसरे की कुछ बातें जाननी थी और बड़े समूह में अपने दोस्त को ऐसे प्रस्तुत करना था ताकि सभी उसके दोस्त बनना चाहे। और यकीन मानिए सत्र की समाप्ति इस गतिविधि के साथ होना अपने आप में एक अनूठा अनुभव रहा। 



मज़ा आ गया, खुद के बारे में इतनी बात की। दूसरों के बारे में भी सुना। मुझे पता नहीं था कि मेरी बातें कुछ लोगों से इतनी मिलती है एक प्रतिभागी ने कहा।



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