Wednesday 8 November 2017

जेंडर आधारित भेदभाव का सामना करती पिलाना ब्लॉक की महिलाएं



परिवार के सभी फैसले मर्द लेते हैं, पैसे से जुड़ा हर फैसला उन्ही का होता है भले ही औरत बाहर जाकर कमाती हो।

सुबह के सत्र ने हमारे अंदर एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया था, कुछ देर के ब्रेक के बाद हम दोपहर के सत्र में हिस्सा लेने वाली महिलाओं का इंतजार कर रहे थे। ये महिलाएं करीब 6 किलोमीटर दूर स्थित गांव से आ रही थी। अच्छी बात ये थी कि सभी महिलाएं समय से 15 मिनट पहले पहुंच गई। सत्र की शुरुआत उंगली डांस से की गई जहां महिलाओं ने खूब खुलकर डांस किया, कई महिलाओं ने तो गोले के बीच में आकर उंगली डांस करवाया भी। आने वाले 2 घंटे में क्या-क्या होगा, साहस का काम, और हम यहां क्यों आए हैं पर संक्षेप में बातचीत की। 


इसके बाद कानाफूसी के खेल के जरिए महिलाओं के साथ जेंडर की कहानी की रचना की, महिलाओं ने एक से बढ़कर एक उत्तर दिए। हालांकि सभी शादीशुदा महिलाएं थे उनके लिए संभोग या सेक्स शब्द का इस्तेमाल करना किसी आग के दरिये पर चलने से कम नहीं था, ऐसे में जब ये सवाल पूछा गया कि ये बच्चे आते कहा से तो सबकी सुई शादी पर अटक गई। लेकिन हमने भी हार नहीं मानी और उन्हें सेक्स के बारे में बातचीत करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद उदाहरणों के साथ हमने जेंडर की परिभाषा स्थापित की।



अगली गतिविधि में महिलाओं को दो समूहों में बांटकर उनसे ऐसे 3 संदेश जो उन्हें लड़की/ महिला होने के वजह से मिले है पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया गया।



लड़कियां पढ़ लिखकर करेंगी क्या? आखिरकार उन्हें चूल्हा चौका ही तो संभालना है, दूसरे के घर जाकर किताबों का क्या करेंगी?”

अगर लड़कियां ज्यादा पढ़ लेती है तो वो घर से भाग जाती है

महिलाएं चाहें कितना भी अच्छा काम कर लें किसी न किसी बात पर तो ताने सुनने को मिलेंगे ही

अगर महिला बच्चे नहीं पैदा कर पाती तो आदमी उसे घर से निकाल देता है, और दूसरी शादी करने से पहले एक बार भी नहीं सोचता



आदमी लोग तो समूह की मीटिंग में जाने पर भी पाबंदी लगाते हैं, पूछते हैं कि कहां जा रही हो, क्या बातें होती है तुम्हारी, करती क्या हो तुम लोग

लड़कियों को हमेशा सीखाया जाता है कि एडजस्ट कर लिया करो, सहनशक्ति बढ़ाओ अपनी, जुबान पर लगाम रखा करो, बहस मत किया करो और शिकायत तो करना ही नहीं है


पति को मेरा घर से बाहर निकलना ही पसंद नहीं है, हर बात पर रोक-टोक लगाते हैं, जबकि वो खुद कमाते भी नहीं है


इन्हीं समूहों में दूसरी गतिविधि के तौर पर घर और सार्वजनिक स्थानों पर महिला-पुरुष में क्या फर्क दिखाई देता है पर चर्चा करने के लिए कहा गया। उनमें से कुछ उदाहरण ये रहे-

घर और बाहर के कामों का पूरी तरह से बंटवारा हो रखा है, घर की चार दीवारी में जो भी काम है वो महिला ही करेगी, उसे घर से बाहर कदम रखने की कोई जरुरत नहीं है, वहीं बाहर के सभी काम पुरुषों के कंधों पर हैं

परिवार के सभी फैसले आर्थिक फैसलों को मिलाकर पति ही लेगा, भले ही पैसा महिला कमाती है

महिला अगर पढ़ी-लिखी हो तो भी शादी के बाद उसके कोई सपने नहीं पूरे हो सकते



महिला को पीटना तो मानो पुरुषों का शौक है, मुझे तो लगता है कि ऐसे पुरुषों की महिलाएं धुलाई करें तो अच्छा है

सार्वजनिक जगहें तो महिलाओं की पहुंच के बाहर हैं, चाहे गाड़ी चलाना हो, दुकानें चलाना हो, सामान की खरीददारी हो

घर से बाहर कदम रखने के लिए पुरुष की अनुमति चाहिए होती है, इसके साथ ही हजार सवाल भी किए जाते हैं और कई नसीहतें भी दी जाती है


इसके बाद महिलाओं को 5 छोटे-छोटे समूहों में बांटा गया और उन्हें जेंडर पर आधारित इस कार्यशाला से संबंधित मूल्यांकन फार्म भरवाया गया। ये सवाल काफी आसान रहे, जिसकी वजह से हमें पता चला कि महिलाओं में जेंडर की कितनी समझ बनी है, उन्हें कौन सी गतिविधियां अच्छी लगी और किन में हम सुधार कर सकते हैं?

मूल्याकांन फार्म का एक सवाल, क्या आपको लगता है कि महिला-पुरुष में कोई फर्क होना चाहिए?”

एक महिला, नहीं बिलकुल फर्क नहीं होना चाहिए, अगर महिला और पुरुष में बराबरी होगी तभी तो महिलाएं वो सब कर पाएगी जिसके लिए अभी उन्हें पुरुषों से अनुमति लेनी पड़ती है। हम भी पढ़ लिख पाएंगे, अपने सपने पूरे कर पाएंगे।

दूसरी महिला, हां, फर्क तो है

पहली महिला, वहीं तो सवाल है न, हमने समझा कि आज लड़की होने का क्या मतलब है, कितनी बंदिशें है लेकिन अगर ये फर्क ही न हो तो सब चीजें कितनी आसान हो जाएंगी, मैं कुछ भी कर पाउंगी


मूल्यांकन फार्म के दौरान सभी समूहों में हो रही चर्चा न केवल इस सत्र के नजरिए से अहम रही बल्कि मैंने उन्हें पैसे के लेन-देन से आगे बढ़ते हुए देखा, एक दूसरे को अपनी बातें समझाते और आपसी सहमति बनाते देखा, ये बदलाव की ओर शायद उनका पहला कदम है।
  

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