Monday 31 July 2017

जेंडर आधारित हिंसा से जूझती बिनौली की महिलाएं



मैंने सबकुछ कर लिया, लेकिन वो मानता ही नहीं। मैंने अपने पति और ससुरालवालों से पूछा कि मेरा कुसूर क्या है ? मुझमें क्या कमी है? अगर मुझसे इतनी ही दिक्कत है तो छोड़ तो मुझे। लेकिन उसकी मारपीट नहीं बंद होती। शराब पीकर वो मुझे मारता है, पीटता है, घर के बर्तन तोड़ देता है, मेरे बच्चों को तक नहीं छोड़ा। जो भी कमाता है वो शराब में बहा देता है औऱ मैं कहीं काम पर जाऊं तो वहां भी मारपीट करता है।


ये कहानी बिनौली में रहनेवाली एक महिला की कहानी नहीं है, बल्कि ऐसी न जाने कितनी महिलाएं हैं जो हर रोज घरेलू हिंसा का शिकार बनती है, लेकिन ये मारपीट भी उन्हें शादी की एक रसम जैसी लगती है क्योंकि बचपन से उन्हें समझाया जाता है कि पति का घर ही उनका घर होता है, वो जैसे रखे वही सही होता है। शायद वो ये बात नहीं मानती पर घर में, आसपड़ोस में इन्हीं बातों का हकीकत का जामा पहनते देखकर उन्हें ये अपने जीवन की सच्चाई लगने लगती है। अहम बात ये है कि जेंडर आधारित हिंसा उस जहरीले धुएं की तरह है जो न तो गांव की ताजा हवाओं के काबू में आती है और नाही इसे शहर की क्रांकीट इमारतें बांध पाती है। जानकारी की कमी इस धुएं का सबसे बड़ा और धारदार हथियार है जिससे ये अपना जाल फैलाने और ज्यादा से ज्यादा लोगों को शिकार बनाने में इस्तेमाल करता है।


महिला स्वंय सहायता समूहों के साथ बातचीत करने का एक मकसद जहां महिलाओं के संगठन को मज़बूत करना था वहीं दूसरा अहम उद्देश्य उनके अधिकारों और उसे सुरक्षित रखने के लिए बनाए कानूनों के बारे में सजग करना रहा। इसी उद्देश्य के मद्देनजर हमने महिलाओं के साथ जेंडर आधारित हिंसा को लेकर वर्कशॉप आयोजित की। सत्र की शुरुआत भेड़ और भेड़िए के खेल से की गई जहां भेड़ रुपी प्रतिभागी गोले के बीच में रहेगा और उसे किसी भी तरह भेड़िए के गोले से बाहर निकलना था। ये खेल काफी मज़ेदार रहा, जहां भेड़ ने निकलने के लिए कई दांव-पेच लड़ाए वहीं समूह बनाकर भेड़िए ने भेड़ को निकलने से रोका। 

खेल के बाद दो वीड़ियो दिखाई गई- एक जिसमें भ्रूण हत्या, सामूहिक बलात्कार को दर्शाया गया, दूसरी एक महिला की कहानी जिसने घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाई। वीडियो में दिखाई जाने वाली हिंसा ने माहौल को काफी गंभीर बना दिया, हॉल में इतना सन्नाटा था कि मानो यहां कोई है ही नहीं। इसके बाद एक महिला की कहानी बड़े गोले में बांटी गई, जहां लड़की की जल्दी शादी, फिर कम उम्र में गर्भधारण, घरेलू हिंसा के बारे में बताया गया। कहानी के बाद महिलाओं को उनके समूहों में बांटा गया और अपने ऊपर होने वाले जेंडर आधारित भेदभाव, हिंसा या अत्याचार के बारे में बांटने के लिए निमंत्रित किया गया। सत्र का ये हिस्सा काफी अहम और नाजुक था, कई महिलाओं ने खुलकर बातचीत की, अपने उपर होने वाली हिंसा के बारे में बात की। मैं जिस समूह में बैठी थी वहां महिलाओं ने अपने घर परिवार में खुशहाली की बात करके हिंसा की किसी भी घटना से इनकार कर दिया। दूसरे समूह में सास और बहू साथ बैठी थी, ऐसा लग रहा था कि बहू कुछ कहना चाहती थी लेकिन झिझक रही थी।



देखो बेटी, थोड़ी बहुत कहासुनी तो हर घर में होती है, ये हिंसा विंसा तो नहीं है। आदमी घर पर खाली बैठेगा तो हाथ उठा ही देता है सास ने कहा
मैं कुछ कह पाती इससे पहले ही बहू बोली, हां दीदी, मेरे पति बहुत सुधर गए हैं, बिलकुल मारते पीटते नहीं है। यहां रहते ही नहीं तो मारेंगे कैसे, उनको दिल्ली में नौकरी जो मिल गई है। मैं बहुत खुश हूं


ये कहते ही उसकी आंखे डबडबा गई, मैं खुद को एक सवाल पूछने से नहीं रोक पाई, आपकी बहू क्या खाली समय में मारपीट या गुस्सा करती है?”

मन भर आया था, समझ नहीं आ रहा था कि क्या शादी दो लोगों की खुशी के लिए की जाती है या फिर एक को कालापानी से भी बद्तर जिंदगी जीने की सज़ा दी जाती है, जाहिर है यहां ज्यादातर महिलाएं शादी से खुश नहीं थी या यूं कहिए शादी के रिश्ते में होने वाली हिंसा से दुखी थी लेकिन समाज की बेड़ियों में ऐसी बंधी हुई थी कि यहां से भागना तो दूर पर हिल पाना भी संभव नहीं था।
सत्र के अगले हिस्से में हिंसा, महिला आधारित हिंसा और जेंडर आधारित हिंसा क्या है, हिंसा के अलग-अलग प्रकार, आकंड़े और हिंसा के चक्र के बारे में समझ बनाई गई। इसके बाद महिला प्रतिभागियों ने एक के बाद एक कानून जो महिला आधारित हिंसा को रोकने के लिए बनाए गए है उसपर चर्चा की। 

मुझे तो पता ही नहीं था कि जो आज तक हो रहा था वो कानूनी अपराध है। मुझे लगा अगर मैंने पुलिस को बताया तो वो मेरी बात नहीं सुनेंगे। मुझे भगा देंगे, लेकिन अब मुझे काफी राहत मिली है, मैं अपने हक के लिए जरुर लडूंगी।


सत्र के आखिरी पड़ाव में उत्साहित महिलाओं ने एक नाटक बनाकर दहेज प्रथा के खिलाफ़ हल्ला बोला। प्रतिभागियों ने खुद ही कहानी बनाई, किरदार चुने और बखूबी दहेज प्रथा, ससुरालवालों का दबाव, महिला समूह की शक्ति और आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाई को दिखाया। ये किसी चमत्कार से कम नहीं था कि जो महिलाएं हिंसा को सिरे से नकार रही थी, उन्होंने न केवल हिंसा को पहचाना बल्कि उससे कैसे लड़े उसका नमूना तुरंत पेश किया। 

बिनौली की महिलाएं बदलाव की वो ताबीर रच रही है जिससे न केवल वो बल्कि बाकी महिलाएं भी अपने अस्तित्व को खुद नया रुप दे पाएंगी।

2 comments: