Tuesday 16 May 2017

काउंसलर-डे: एक अध्याय की समाप्ति, एक नए सवेरे की उम्मीद



धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होये
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होये।।

संत कबीर का ये दोहा साहसके वर्तमान और मेरी मनोस्थिति को बयां करने के लिए एकदम उपयुक्त है। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस पड़ाव पर साहस धीरे-धीरे पहुंच रहा है उसकी परिकल्पना हमने लगभग एक साल पहले की थी। साहस के जेंडर, यौनिकता और प्रजनन स्वास्थ्य पाठ्यक्रम का तीसरा अध्याय काउंसलर-डे के आयोजन के साथ सफलतापूर्वक समाप्त हुआ। 

कई मायनों में काउंसलर डे साहस के लिए काफी खास और अहम है- ऐसा इसलिए क्योंकि पहली बार काउंसलर डे का आयोजन किया गया, काउंसलिंग की परिभाषा के विपरित किसी प्रतिभागी को उनकी समस्याओं का समाधान देने के बजाय उन्हें खुद उसका सामना करने के लिए प्रोत्साहित किया, जहां एक तरफ कुछ प्रतिभागियों की काउंसलिंग चल रही थी वहीं दूसरी ओर हमारे जेंडर लीडर्स और उनके समूहों ने रंगारंग प्रस्तुति दी।
काउंसलर-डे की शुरुआत में एक जेंडर ग्रुप ने सभी प्रतिभागियों को एक मज़ेदार खेल खिलाया। उसके बाद हर जेंडर ग्रुप को एक स्थिति दी गई जहां उन्हें अपने ग्रुप के साथ मिलकर इस स्थिति पर आधारित नाटक प्रस्तुत करने का आमंत्रण दिया गया। इन स्थितियों और कहानियों का उद्देश्य उनकी जेंडर और यौनिकता पर बनी समझ को निखारना और मजबूत करना रहा। वर्कशॉप का ये समय काफी मनोरंजक रहा- क्योंकि स्थितियां काफी पेचीदा, थोड़ी जटिल और असहज करने वाली थी, बावजूद इसके सभी ग्रुप ने पूरे जोशो-खरोश से नाटक में रंग भरा बल्कि खुलकर अपनी यौनिकता को भी दर्शाया।

उदाहरण के तौर पर एक नाटक के दौरान एक लड़की ने लड़का का रोल निभाया, और दूसरी लड़की को पूरे फिल्मी अंदाज में प्रोपोज किया। दूसरी स्थिति में एक लड़की जब अपने लड़के मित्र को दूसरे लड़के के साथ अंतरंग होते देखती है, तो वो अपने दोस्त को चांटा मारती है। आप सोचेंगे तो क्या हुआ, ये तो समाज में होता है क्योंकि समाज में समलैंगिकता को स्वीकारा नहीं जाता तो जवाब सुनिए-





दीदी, लड़की इसलिए थप्पड़ मारती है, क्योंकि वो भी लड़के को पसंद करती है और उसे लगा कि लड़का उसे धोखा दे रहा है

‘”लड़का उसका बहुत अच्छा दोस्त था, उसने कभी अपने दिल की बात नहीं बताई तो लड़की को लगा कि उसका दोस्त अबतक उसे बेवकूफ बना रहा था

दीदी, उसे अपने दोस्त को चांटा नहीं मारना चाहिए था, उससे बात करनी चाहिए थी। अगर वो दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं तो उसकी दोस्त को कोई परेशानी नहीं होगी।

वहीं तीसरी स्थिति में जहां मेट्रो में लड़के किन्नर को छेड़ते और परेशान करते हैं, प्रतिभागियों ने दिखाया कि अगर उनमें से कोई लड़की मेट्रो में होती तो वो लड़के को डांटती और किन्नर को बैठने के लिए जगह देती।

इस दौरान दो प्रतिभागियों की काउंसलिंग भी चल रही थी- उनके साथ वन-टू वन बातचीत में  उन्हें समानुभूति क्या होती है और उससे हम बेहतर इंसान कैसे बन सकते हैं पर चर्चा की गई।

सत्र के दूसरे हिस्से में सभी जेंडर ग्रुप को मौका दिया गया कि पहली बार वो साथ आए और बड़े गोले में प्रस्तुति दें। जहां एक ग्रुप ने कॉमेडी शो प्रस्तुत किया तो दूसरे ने बॉलीवुड गाने से समां बांधा, तीसरे ने लड़कियों की पढ़ाई को प्रोत्साहन देने के लिए नाटक पेश किया तो चौथे ग्रुप ने नाटक के जरिए महिलाओं की आजादी पर रोशनी डाली। 





इस दौरान एक प्रतिभागी से वन-टू वन बातचीत की जा रही थी, ऐसा इसलिए भी की साहस की सभी वर्कशॉप गोले में आयोजित की जाती है जहां कई कहानियां और निजी बातें निकलकर सामने आती है ऐसे में कई बार वो कुछ नए पुराने दर्द को भी साथ लाती है- इस बातचीत के जरिए वो कैसे अपनी समस्याओं से बाहर निकले उसपर खुलकर चर्चा की गई।

तीसरे भाग में प्रतिभागियों को पहली 10 वर्कशॉप में दिखाई गई अलग-अलग मुद्दों पर आधारित फिल्में दिखाई गई जिससे उनकी समझ और पुख्ता हो और अगर वो कोई सवाल पूछना चाहे तो पूछ पाएं। इस दौरान भी दो प्रतिभागियों से अलग-अलग बातचीत की गई। इस बातचीत का मकसद उनकी समस्याओं को सुलझाना न होकर बल्कि इन समस्याओं से खुद जूझना और खुद समाधान निकालने के लिए प्रोत्साहित करना रहा। प्रतिभागियों ने खुलकर अपनी परेशानियों पर चर्चा की, और आगे के प्लान पर भी रोशनी डाली।


और वर्कशॉप के अंत में जो हुआ वो मेरी जिंदगी के यादगार पलों में हमेशा के लिए जुड़ गया। 


खैर मैं इस वर्कशॉप को अंत नहीं कहूंगी क्योंकि इन प्रतिभागियों ने मुझे एक बेहतर समाज का प्रतिबिंब दिखाया है, इनकी समझ, भागीदारी, सीखने की चाह और कुछ करने के जज्बे ने मुझे और ताकत दी है कि साहस का काम ऐसे ही चलते रहे- भारत के अनेको-अनेक किशोर-किशोरियों तक पहुंचे ताकि एक हिंसा रहित समाज का सपना हकीकत की रोशनी देख पाए।     


Friday 5 May 2017

बाल यौन शोषण- चुप्पी तोड़ना जरुरी है!

झूमती-नाचती ठुमकती हूं
खेल खेलती- शरारत करती हूं मैं
सबकी प्यारी, सबकी दुलारी
पापा-मम्मी की परी हूं मैं
घर के हर कोने पर हक जमाती
पार्क में दोस्तों के साथ धमा-चौकती भी करती
लेकिन... लेकिन...
अब कुछ भी कहने से डरती हूं
घर के उस कोने से सिहर जाती हूं
उस रात के काले स्याह अंधकार ने
पार्क की उस गली, घर के उस कमरे में
विश्वास और प्यार ने चढ़ाई बलि
अंधकार में लुप्त हुई मासूमियत
अब खामोश हूं मैं।

किशोरावस्था जीवन का वो पड़ाव है जो अलग-अलग तरह के बदलावों का समावेश है, इन बदलावों को समझने और इनसे संबंधित सवालों की उधेड़बुन में कई बार किशोर-किशोरियां भ्रमित हो जाते हैं या उन्हें समझ नहीं आता कि उनके साथ क्या हो रहा है। ऐसे में अगर उन्हें कोई उनकी मर्जी के बिना छुए, ऐसे छूने की कोशिश करे जो उन्हें असहज कर दे या फिर उनका शारीरिक शोषणा करे वो भी ऐसा शख्स जिसपर वो विश्वास करते हैं और जो उनके जीवन का हिस्सा है तो क्या परिणाम होंगे ये सोचकर भी सिहरन होती है।

हैरानी की बात ये है कि समाजिक तौर पर बाल यौन शोषण के बारे में बातचीत ही नहीं होती, अपराध के खिलाफ़ शिकायत करने की बजाय बच्चों को चुप रहने के लिए कह दिया जाता है ताकि परिवार की प्रतिष्ठा पर आंच न आए, और सबसे बुरी स्थिति वो जहां बच्चे को ये ही नहीं पता होता कि उसके साथ यौन शोषण हुआ है जो एक अपराध है।

किशोर-किशोरियों में जेंडर और यौनिकता की समझ बनाने के साथ साथ साहस का एक अहम उद्देश्य ये है कि वो किशोर-किशोरियों में बाल यौन शोषण की समझ बनाए ताकि वो इसे चुनौती देने के काबिल बनें साथ ही आने वाले जीवन में वो किसी भी तरह की जेंडर आधारित हिंसा का मुकाबला करने में सक्षम हो जाए।

इस मुद्दे की गंभीरता और अहमियत को देखते हुए प्रतिभागियों को एक बार फिर सहमति के बारे में सजग किया गया। वर्कशॉप की शुरुआत चाइल्ड लाइन की बेहतरीन फिल्म कोमल दिखाकर की गई। इसके बाद बाल यौन शोषण क्या होता है, कैसे होता है, क्या-क्या बातें बाल यौन शोषण में आती है, अगर कोई बाल यौन शोषण का शिकार बनता है तो क्या बातें ध्यान में रखनी चाहिए की जानकारी एक प्रेजेन्टेशन के जरिए दी गई।


इस जानकारी के बाद गोले में बैठे प्रतिभागियों को विश्वासपूर्ण निमंत्रण दिया गया ताकि वो हिम्मत करके बाल यौन शोषण संबंधित बात, कहानी, हादसा, आंखो देखी गोले में बांटे जो उनके साथ हुआ हो। वर्कशॉप का ये बहुत मुश्किल हिस्सा होता है, और इसलिए यहां तक पहुंचने के लिए इससे पहले 8 सत्र बनाए जाते हैं। जो किशोरियां मुस्कुराते, कानाफूसी करते हुए, हंसी ठिठोली करके और कभी कभार उधम मचाते नहीं थकती उनके चेहरे पर एक अजीब सी खामोशी थी, कुछ के चेहरे पर परेशानी, कुछ के चेहरों पर सवाल और कुछ की आंखों में वो दर्द झलक रहा था मेरा मन अंदर तक कांप गया। डर और घबराहट ने मानो मुझे जगड़ लिया हो।

झिझकते, डरते, आंखों में इशारों से अनुमति और विश्वास लेते हुए कई किशोरियों ने अपनी आपबीती सुनाई। 12 साल की लड़की ने रेपके बारे में सुना है क्योंकि उसकी गली में किसी के साथ रेप हुआ है। कई बार गली के कोने में लड़कियों के रास्ता रुकते हुए भी देखा है। कई बार उन्हें देखकर आदमियों ने हस्तमैथुन किया है, गलत तरीके से छूने की कोशिश भी की है।

इन सबके बीच बार बार दो-तीन बातों पर मैं जोर दे रही थी - 

जो कुछ भी आपके साथ हुआ उसमें आपकी कोई गलती नहीं है जो इंसान आपके साथ गलत कर रहा है वो दोषी है

अगर कोई आपको आपकी बिना मर्जी के छुए तो आप बुलंद आवाज़ में जोर से चिल्लाकर न बोलें

अपने साथ हुए बाल यौन शोषण की जानकारी एक विश्वासनीय शख्स को जरुर बताएं, तब तक बताते रहे जबतक आपको मदद नहीं मिल जाती

इन संदेशों के साथ साथ सभी प्रतिभागियों से निजी सुरक्षा पुस्तिका भरवाई गई जो उन्हें सुरक्षित और असुरक्षित स्पर्श, उससे जुड़े विचार और भावनाएं, असुरक्षित टच से निपटने के लिए क्या करना चाहिए, उदाहरण और कुछ कहानियों के जरिए बाल यौन शोषण से लड़ने की समझ बनाई। बाल यौन शोषण पर बात करना बहुत जरुरी है, बच्चे समझ नहीं पाते कि उनके साथ क्या हो रहा है, उन्हें बुरा लग सकता है पर उन्हें नहीं पता कि उन्हें क्या करना चाहिए, किससे बात करनी चाहिए, उन्हें ऐसा भी लग सकता है कि उनकी बात का कोई यकीन नहीं करेगा?  और जब इस बारे में उन्हें बाद में जानकारी होती है तो वो टूट जाते हैं, कमजोर पड़ जाते हैं। ऐसे में किशोर-किशोरियों पर विश्वास करके उनसे बात करनी चाहिए ताकि वो ये भार ये दुख पूरे जीवन न अपने साथ बांध कर रखें।





बाल यौन शोषण पर चुप्पी तोड़ना बहुत जरुरी है ताकि कोई बच्चा ऐसा महसूस न करे जैसे वो ऊपर लिखी कविता में महसूस कर रहा है।        

Wednesday 3 May 2017

यौनिकता और हम :-)



मुझे नहीं लगता कि किन्नर बुरे होते हैं। पता है दीदी जब हम दूसरी जगह रहते थे, तब घर के ऊपर वाले माले में किन्नर रहा करते थे। एक दिन वो नहा रहे थे, लेकिन दरवाजे की कड़ी नहीं लगी थी और मैंने गलती से दरवाजा खोल दिया। मेरी नजर उनके लिंग पर पड़ गई, पर मैं बहुत छोटी थी दीदी मुझे अक्ल नहीं थी। लेकिन हैरानी की बात है कि उन्होंने मुझे नहीं डाटा और बोला कुछ नहीं होता तुम जाओ यहां से। एक प्रतिभागी ने झिझकते हुए सत्र के दौरान ये बात सभी से बांटी।

प्रतिभागियों के सामने जब जेंडर प्रस्तुत किया जाता है तो ये बात मन में बैठ सकती है कि लड़का और लड़की दो जेंडर होते हैं। बहुत जरुरी है कि इस दौरान धारणा का दायरा बढ़ाया जाए और इस बात की समझ बनाई जाए कि लड़की, लड़का के अलावा और कई जेंडर और यौनिक पहचानें होती है। और उससे भी जरुरी है कि यौनिकता पर चर्चा की जाए- क्योंकि पहचानों की चर्चा करने से पहले खुद के लिए यौनिकता के मायने या मैं अपनी यौनिकता को कैसे समझती हूं ये जानना और समझना बेहद जरुरी है।
इसी बात को मद्देनजर रखते हुए जेंडर के तुरंत बात किशोरियों के साथ यौनिकता पर आधारित सत्र किया गया। जहां समाज में यौनिकता के नाम पर लम्बी चुप्पी साध रखी है, जहां युवा भी यौनिकता शब्द बोलने में झिझकते हैं वहां किशोरियों के साथ यौनिकता की बात, फिर यौनिक पहचानों की बात और वो भी महज 2 घंटे के अंदर, हां ये काफी चुनौतिपूर्ण रहा। लेकिन इस सत्र में जो कुछ भी बातें, कहानियां और सवाल निकलकर सामने आए उससे इस चुनौती को स्वीकारना एक रोचक अनुभव बन गया।


सत्र की शुरुआत दो-दो प्रतिभागियों के बीच कुछ बहुत ही निजी सवालों पर बातचीत के साथ हुई जैसे क्या कभी भी उन्होंने समाज का कोई नियम तोड़ा है या फिर ऐसे कपड़े पहने हैं जो उन्हे बेहद पसंद है पर उन कपड़ों के लिए उन्हें डांट पड़ी हो इत्यादि। सवालों की तरह जवाब भी काफी अन्तरंग रहे।




मेरी मम्मी को मेरा घर से बाहर निकलना बिलकुल पंसद नहीं है। वो नहीं चाहती कि मैं कहीं भी जाऊं तो जब एक दिन मैं अपनी दोस्त के घर खेलने के लिए चली गई, तो उन्होंने मुझे बहुत मारा और कहा कि आगे से अगर तुम कहीं गई तो तुम्हारी टांगे तोड़ दूंगी।प्रतिभागी ने कहा।

निर्देशक का सवाल, ‘फिर क्या हुआ? अब तुम खेलने नहीं जाती ?’

नहीं, ऐसा कैसे हो सकता है। मुझे खेलना पसंद है तो मैं खेलने जाती ही हूं प्रतिभागी ने बिना वक्त जाया करते हुए जवाब दिया।

सत्र को आगे ले जाते हुए प्रतिभागियों से एक के बाद एक सवाल पूछे गए जहां उन्हें ये बताना था कि क्या वो सवाल में पूछी गई परिस्थिति से सहज हैं या असहज। सवालों का पूछने का तरीका ऐसा था कि उन्होंने सोचने के लिए ज्यादा समय नहीं दिया गया। कई बहुत रोचक बातें सामने आई जैसे लगभग सभी लड़कियां एक लड़का दूसरे लड़के से प्यार करता है इस बात से एकमत में असहज थी वहीं संबंधों में हिंसा के एकदम खिलाफ थी, हालांकि कुछ लड़कियों एक लड़की दूसरी लड़की से प्यार करती हैं की बात से सहज थी।


इसके बाद प्रतिभागियों को गोले के बीच में रखी हुई तस्वीरों में से एक तस्वीर चुननी थी और तस्वीर को देखकर उसे मर्दाना या फिर औरताना डिब्बे में रखना था। कई प्रतिभागियों ने एकदम फटाफट निर्देश को मानते हुए तस्वीरों को उनके हिसाब से जो सही है उसे डिब्बे में रख दिया। लेकिन इसमें कई फोटो ऐसी हैं जिसे देखकर ये कहना काफी मुश्किल है कि उन्हें किस ढांचे में डाला जाए। प्रतिभागियों के चेहरे पर चिंता और परेशानी के भाव थे क्योंकि आज तक हमने केवल दो ही ढांचों के बारे में समझा है।


दीदी ये लड़का है क्योंकि इसके चेहरे पर तो बाल हैं, पर इसकी आंखे तो लड़की जैसी है। इसने मैकअप कर रखा है

ये तो लड़का है क्योंकि ये साधू है

ये तो लड़की ही है क्योंकि इन्होंने मेकअप किया है



लेकिन जब इन तस्वीरों के पीछे की कहानी बांटी गई तो प्रतिभागी स्तंभ रह गए। जिन्हें वो लड़का समझ रहे थे वो दरअसल एक लड़की थी जिसे एक तरह की बीमारी हो गई थी जिसके वजह से उसके चेहरे पर बाल निकल रहे थे। जो उन्हें लड़का लग रहा था वो दरअसल एक बौद्ध मॉक है।
इस प्रक्रिया से प्रतिभागियों को एक बात तो समझ आ गई कि लड़का और लड़की के अलावा भी कई पहचानें होती हैं। इसी को आगे बढ़ाते हुए अलग-अलग जेंडर और यौनिक पहचानों के बारे में जानकारी दी- ट्रांसजेंडर, किन्नर, गे, लेस्बियन, इन्टरसेक्स आदि के बारे में समझ बनाई। और फिर 20 मिनट तक जो हुआ उसने मुझे हिलाकर रख दिया। मेरे ऊपर सवालों की ऐसी बारिश हुई कि सवालों की छतरी खोलते खोलते मैं पूरी सराबोर हो गई।

क्या किन्नर भी स्कूल में पढ़ सकते हैं, उन्हें एडमिशन कैसे मिलता है?’
क्या किन्नर बचपन से ही ऐसे होते हैं
क्या किन्नरों के माता-पिता होते हैं
लड़का-लड़का या फिर लड़की-लड़की एक दूसरे के साथ सेक्स कैसे करते हैं
क्या किन्नरों की शादी हो सकती है
किन्नरों के प्राइवेट अंग क्या होते हैं
अगर किन्नरों को पैसा देने से मना कर दो तो वो पूरे कपड़े उतार देते हैं। मैंने उनका लिंग देखा था उसमें बहुत बात होते हैं
किन्नरों के पास लिंग कैसे हो सकता है, क्योंकि उनके तो स्तन होते हैं न, स्तन तो लड़कियों के पास होने चाहिए
किन्नर लड़के ही होते हैं पर जब वो हमारी उम्र में आते हैं न तो वो लड़कियों से जैसा व्यवहार करने लगते हैं, तैयार होने लगते हैं। वो किसी को कुछ नहीं कहते पर लोग उनका मज़ाक उठाते हैं उन्हें परेशान करते हैं


खैर जवाब देते देते भी कई सवालों ने मुझे एक बार फिर घेर लिया। इतने में ही मोना ने उनसे पूछा, अच्छा कोई बताएगा मुझे कि हम इन सब बारे में बात क्यों कर रहे हैं? इतने तरह के लोग- हमे जानना क्यों जरुरी है

प्रतिभागी, "क्योंकि कई बार हमें इन पहचानों के बारे में जानकारी नहीं होती, तो हम उनका मज़ाक उड़ाते हैं और उनकी बेइज्जती भी कर देते हैं। अगर हमें जानकारी होगी तो हम उनका वैसे ही सम्मान करेंगे जैसे हम एक दूसरे का करते हैं"

समलैंगिकता के बारे में प्रतिभागियों की समझ एकदम दुरुस्त हो जाए इसलिए सत्र के आखिर में पप्पू और पापा सेक्स चैट फिल्म दिखाई।

इस सत्र का निर्माण और एप्लीकेशन दोनों ही बेहद भारी रहे, एक तरफ खुद के दिमाग में जंग चल रही थी कि कितनी जानकारी सही जानकारी है, क्या प्रतिभागी ये सब समझ पाएंगे और अगर समझ गए भी तो क्या असल जिंदगी में उसे अप्लाई कर पाएंगे? वहीं सत्र के दौरान सारी प्रक्रियाओं में प्रतिभागियों की भागीदारी और उनमें समानुभूति का भाव आना यूरेका अनुभव से कम नहीं था।