Tuesday 11 April 2017

मेरा शरीर कैसा है ?



मुझे मेरा चेहरा बिलकुल अच्छा नहीं लगता
मुझे पता है मैं मोटी हूं, लोग मुझे चिड़ाते हैं पर मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
मैं बहुत पतली हूं

किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक बदलाव किशोर-किशोरियों की मानसिकता को काफी प्रभावित करते हैं मसलन मेरा शरीर कैसा दिखता है?, क्या मैं सुंदर हूं?, क्या मैं अपने शरीर को उक्त व्यक्ति की तरह बना सकता या सकती हूं, कई बार अपने शरीर को लेकर वो हीन भावना से ग्रस्ति हो जाते हैं। हैरानी की बात ये है कि किशोर-किशोरियों से बातचीत करते समय वो अपने शरीर को लेकर क्या सोचते हैं उसे अनदेखा कर देते हैं। इसलिए महावारी के सत्र के बाद हमने किशोरियों के साथ बॉडी इमेज पर बातचीत करने का फ़ैसला लिया।


पहली एक्टिविटी के दौरान शीशे में अपने शरीर को देखकर प्रतिभागियों के मन में सबसे पहला विचार क्या आया, उसे एक चार्ट पेपर पर लिखने के लिए आमंत्रित किया गया। ये प्रक्रिया सुनने में जितनी सरल लगती है करने में उतनी ही गंभीर है, शीशे में देखते हुए कई प्रतिभागियों के चेहरे के भाव बदले, कुछ हंसे, कुछ सोच में पड़ गए और कुछ के चेहरे पर निराशा झलक उठी। कुछ प्रतिभागियों ने हिम्मत करके चार्ट पेपर पर अपने भाव लिख दिए।




दूसरे भाग में प्रतिभागियों को अलग-अलग विज्ञापन दिखाए गए, जिसके बाद उन्हें एक प्रश्नावली दी गई जो विज्ञापनों में दिखाए जाने वाले शरीर के प्रकार और आकार के बारे में रही। हैरानी की बात ये थी कि प्रतिभागियों में बॉडी इमेज की समझ तो थी लेकिन सही और गलत को परखने का अंदाजा नहीं था, शायद इसलिए भी क्योंकि एक ही तरह की बातें सीखाई जाती है और दूसरा परिपेक्ष्य तो बताया भी नहीं जाता। 



विज्ञापन, फिल्म, टीवी, आस-पड़ोस और कुछ निजी उदाहरणों के जरिए बॉडी इमेज क्या होती है, सकारात्मक और नकारात्मक बॉडी इमेज का मतलब क्या है पर समझ बनाई गई। मज़ेदार बात ये है कि प्रतिभागियों ने बढ़चढ़ कर चर्चा में हिस्सा लिया और मुझे ज्यादा बोलने की जरुरत ही नहीं पड़ी। इसके बाद प्रतिभागियों को बॉडी इमेज पर अपनी समझ को रंगमंच के जरिए समझाना था।




वर्कशॉप का ये हिस्सा मेरा पसंदीदा हिस्सा है, इस बार हमने प्रतिभागियों को अपने हिसाब से ग्रुप में बांटा, देखना चाह रहे थे कि क्या वो सभी के साथ सहज हो सकते है या फिर सहज होने की कोशिश कर सकते हैं? चार ग्रुप में बंटे प्रतिभागी पुरजोर से नाटक तैयार करते नजर आए, परिस्थितियों पर अपनी राय देते, सवाल करते, स्थितियों को अलग रुप और रंग देना तो उनका मानो उनका लक्ष्य बन चुका था। 

इस दौरान कई जगह मैं बस स्तब्ध रह गई जैसे एक कहानी में कहा गया कि 3 लड़कियां स्कूल में पढ़ती है, उनमें से एक लड़की की दोस्त पार्टी रखती है और उससे अच्छे कपड़े पहनने को कहती है और सूट पहनकर बहनजी बनकर आने के लिए मना कर देती है। प्रतिभागियों ने दर्शाया कि वो लड़की अपनी पहचान को कायम रखते हुए सूट ही पहनकर पार्टी में आती है, उसकी दोस्त उसकी बेइज्जती भी करती है, पर बाकी दोस्तों के समझाने पर वो अपनी दोस्त को न केवल पार्टी में वापस लेकर आती है बल्कि उससे अपनी बातों के लिए माफी भी मांगती है।



दूसरी कहानी में एक लड़के को चश्मे और सिर में ज्यादा तेल लगाने की वजह से कई ताने सुनने को मिलते हैं, पर वो अपना अपना आत्मविश्वास नहीं खोता और अपने दोस्तों को समझाने की कोशिश भी करता है। 




रंगमंच पर इतने आत्मविश्वास से कहानियों को अमली जामा पहनाते, अपनी एक्टिंग को तराशते और अपनी बात को सबके सामने रखते प्रतिभागियों में बहुत कुछ बदलाव नजर आ रहा है। इतनी गंभीर बात को इतनी सहजता से समझते और अपनाते हुए प्रतिभागी सोचने पर मजबूर करते हैं और विश्वास भी दिलाते हैं कि जो बातचीत हम इन किशोर-किशोरियों के साथ कर रहे हैं वो कितना जरुरी है इनके समग्र विकास और समाज में बदलाव लाने के लिए।

सत्र के समाप्त होने के बाद घर जाने को कोई प्रतिभागी तैयार ही नहीं था, ऐसे में दो प्रतिभागियों ने बाकियों को एक मनोरंजक खेल भी खिलाया। 

जेंडर, यौनिकता और प्रजनन स्वास्थ्य पाठ्यक्रम के तीसरे सत्र महावारी में हमने पैड के बारे में चर्चा की थी जिसके बाद आज छोटी सी खुशी की साथी सीमा जोशी पैड के अलग-अलग विकल्प जैसे मासिक धर्म कप, सूती कपड़े के पैड आती लेकर आई, सीमा के इस जुड़ाव और उत्सुकता ने मुझे काफी प्रभावित किया, ये पहली बार था कि जिस संस्था के साथ हम काम कर रहे हैं वो मुद्दे से इतना घुल-मिल गए है। दूसरी हैरान करने वाली बात ये थी कि वो किशोरियों ने पैड को देखकर पिछले सत्र में झिझक और शर्म से नजरें झुकाए हंस रही थी आज वो इन विकल्पों को हाथ में लेकर महसूस कर रही थी, सवाल पूछ रही थी।



दीदी इस मासिक धर्म को योनि में लगाने से दर्द तो नहीं होता

तीसरा पड़ाव इससे भी ज्यादा रोचक रहा जब दो किशोरियों ने मासिक धर्म कप से जुड़ी जानकारी देखने के लिए बेझिझक इंटरनेट का इस्तेमाल किया, यही नहीं वो यू-ट्यूब पर हिंदी का वीडियो ढूंढने लगी ताकि अगले सत्र में सभी को जानकारी वाला वीडियो दिखाया जा सके।

कभी-कभी शब्द कम पड़ जाते हैं भावनाओं को व्यक्त करने के लिए, कुछ ऐसा ही उस समय मुझे महसूस हो रहा था। इतनी सारी बातें एक ही सत्र में हो गई कि दिल खुशी से झूमने लगा।
सही कहा है किसी ने
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों

2 comments:

  1. यह एक बहुत अनिवार्या विशय है| इसको इतने रोचकपूर्ण ढंग से प्रस्तुत कर लड़कियों में उतसाह जगाने के लिए आपको बहुत बहुत बँधाई|

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    1. धन्यवाद माया, आपकी बातें काफी प्रोत्साहित करती हैं हमें आगे काम करते रहने के लिए।

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