Thursday 28 April 2016

खुशनुमा अंधेरा

हवाओं का रुख बदल रहा था.. जो अब तक धीरे धीरे कानों के पास आकर खुसफुसाहट कर रही थी, उसकी रेशमी जुल्फों के बीचो बीच जगह बनाकर नई कहानी लिखने की तैयारी कर रही थी, अब रफ्तार पकड़ने लगी थी। ये मेरा वहम नहीं था बल्कि आने वाले तूफान का संकेत था।अचानक तूफान, हां भाई दिल्ली में तो कुछ भी कभी भी हो सकता है। इससे पहले मैं सोच के ताने बाने में और उलझता उसकी सहमी सी आवाज़ ने मेरा ध्यान तोड़ा और मैं बिना कुछ बोले ही स्कूटी की पीछे वाली सीट पर बैठ गया। अजीब था फिल्मों में तो मैंने देखा था कि पहली मुलाक़ात में लड़का लड़की को बाइक पर घर तक छोड़ता है और मैं ? पूरा बेवकूफ हूं- कोई लड़की के पीछे बैठता है कभी, लोगों के तो पांव पर कुल्हाड़ी गिरती है मैंने तो अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। अब तो कुछ भी नहीं हो सकता, प्रेम तो छोड़ों दोस्त भी नहीं बन पाएंगे !

बाहर की हलचल और दिल में मची हलचल का तालमेल बिलकुल एक ही समय तय हुआ था। कुछ सोच नहीं पा रहा था। हे भगवान! कल इसने मुझे भैया कह दिया तो ? मैं तो जीते जीत मर जाऊंगा। जिससे प्यार किया उसने भैया बना लिया! ऐसा सितम तो भगवान दुश्मनों पर भी न गिराए। कसम से मेरे सोच के गधे मुझसे 100 कदम आगे रहते हैं। नहीं नहीं ये कॉलेज थोड़े ही है और मैं कोई मजनूं थोड़े ही हूं जो ये मुझे भैया बना लेगी। 10 मिनट की स्कूटी राइड में मैंने न जाने कितने बार अपने आपको एक आइडियल लड़के की कसौटी पर खरा नहीं उतरने के लिए कोसा। हां कहां था मैं आइडियल लड़का ?- चेहरा बहुत ही मामूली, थोड़े लम्बे बाल, जिम का तो कभी नाम ही नहीं लिया, कपड़े भी पत्रकार जैसे (कुर्ता पहनना पसंद है मुझे, कभी कभार टी शर्ट और पैंट भी पहन लेता हूं पर जींस खरीदने के लिए पैसा बर्बाद करना बिलकुल नामंजूर है मुझे)। इतने एवरेज से लुक के साथ कोई लड़की मुझे शायद भैया ही बनना पसंद करेगी।

ओफ! ये क्या था? इतने जोर से कोई ब्रेक मारता है क्या? मैं गिर जाता तो ? तुम्हें कुछ हो जाता तो? ध्यान से चलाया करो। इससे अच्छा तो मैं रिक्शे से चला जाता मेरी अंदरुनी झुलझुलाहट ने शब्दों का रुप लेकर सीधे उसपर हमला बोला। बहुत ही रुखे स्वर में उसने आई एम सॉरी बोला। थोड़ा रुकने के बाद जब सांसे नॉर्मल हुई, दिल को काबू कर दिमाग ने मेरे वजूद को अपनी पकड़ में लिया तब मैं कुछ बोलने की स्थिति में आया।नहीं नहीं आप क्यों माफी मांग रही है। मुझे ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी। एक तो आपने मुझे लिफ्ट दी। तेज हवाओं के बीच में जहां मुझे कोई सवारी नहीं मिल रही थी वहां आपने मुझे मेट्रो स्टेशन तक छोड़ा। और मैं बेवकूफ आपको धन्यवाद करने की जगह उल्टा सीधा सुनाने लगा। समझ नहीं आ रहा कि पहले धन्यवाद बोलू या फिर माफी मांगू

उसके चेहरे से मायूसी मानो हवा हो गई और खिलखिलाते हुए बोली, इट्स ओके। आपका ये बोलना ही बहुत है। वैसे आप उतने अकडू नहीं है जितना लोग आपको समझते हैं। चलिए जाएं जल्दी नहीं तो मेट्रो मिस हो जाएगी। अच्छा कल मिलते हैं। गुड नाइट। 

इतनी सारी बातें वो एक सांस में बोलकर चली गई और मेरे पांव रोड पर मानो जम गए थे, मैं एकटक उसे जाते हुए देख रहा था। वो जा चुकी थी, उसके साथ शायद मेरा दिल भी जा चुका था। ऐसी क्या बात है इसमें कि मैं कुछ बोल ही नहीं पाता, मेरे शब्द जिनपर मुझे इतना गुरुर है मेरे गले से होठों तक का रास्ता तय नहीं कर पाते।   

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