Friday 9 October 2015

पत्रकार का प्यार-प्यार होता है !


उस मीठी आवाज़ को सुनकर दिल बाग-बाग होने ही वाला था कि मेरी पीठ पर जो दमदार हाथ पड़ा उसने मेरे खाबो-ख्याल को तार तार कर दिया। दरअसल वो मेरे फेवरेट शिफ्ट इंचार्ज है (व्यंग्य तो आप समझ ही गए होंगे) जिन्होंने मेरी पीठ थपथपाकर कर सपनों की ट्रेन को स्टेशन पर पहुंचने से पहले ही रोक दिया। मैंने अपने मन में सोचाहे भगवान ! अब सोचने के लिए भी शिफ्ट इंचार्ज से परमिशन लेनी पड़ेगी, अगर प्यार करना हो तो! नहीं...नहीं...ऐसा ख़तरा तो मैंने अगले जन्म में भी नहीं उठाना चाहूंगा ?इस डरवाने एनकाउंटर के बाद मैं एक बार फिर ख़बरों को नया रुप देने में जुट गया।एक बजने वाला था पर मुख्य ख़बरों में अपडेट अभी तक नहीं मिला था। अगर नई अपडेटेट ख़बरें नहीं दिखाई तो बॉस तो डांटेगा ही, साथ ही ये जनता के साथ धोखा भी होगा जो मैं तो बिलकुल बर्दाश्त नहीं कर सकता। 

हमारा असाइनमेंट डेस्क कभी कभार नेताओं की तरह व्यवहार करता है, चुनावों से पहले जैसे वादे नेता करते है वैसे ही बुलेटिन से पहले असाइनमेंट कहता है कि बस थोड़ी देर और, अभी अपडेट कर देंगे! मेरी धड़कन ऊपर नीचे हो रही थी कि अचानक अपने माथे से बालों की लट हटाते हुए वो बोली, “सर आप टेंशन मत लीजिए, मैंने रिपोर्टर को फोन किया है वो अभी बता देगा कि मुख्यमंत्री सभास्थल पर पहुंचे कि नहीं, हो सकता है मुख्यमंत्री का लाइव भी मिल जाए।

ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई असानमेंट डेस्क से इतने प्यार से बात कर रहा हो, नहीं तो कुछ भी पूछने पर हमेशा चीखते हुए ही जबाव मिलता था। नहीं नहीं... ये सब सोचने का समय नहीं था मेरे पासखैर बुलेटिन शुरू हो गया लेकिन मुख्यमंत्री का कुछ अता-पता नहीं था, बुलेटिन की ड्यूरेशन छोटी न हो जिसके लिए मैं जुगाड़ तलाशने लगा। मन में रह-रहकर विचार आ रहा था कि क्यों एक इंटर्न की बातें सुनकर रुक गया, कुछ भी गड़बड़ होगी तो मुझे डांट पड़ेगी उसका क्या जाएगाउसे तो कोई कुछ नहीं बोलेगा, वैसे भी वो बहुत सुंदर है ! इतने में ही उसने मुझे फिर पुकारा, बोली सर मुख्यमंत्री लाइव मिल रहे हैं, क्या काटेंगे? यहां मैं आपको बताना चाहूंगा कि काटने का मतलब वीडियो या फीड को एडिट करना होता है, अगर लाइव काटने को कहा जाए, तो उसे स्क्रिन पर सीधे दिखाना होता है।





आज सच में उसने मेरी जान बचा ली, मेरे बुलेटिन में तो चार चांद लग गए। कुछ देर पहले जो हल्की सी नाराज़गी जागी थी वो एकदम रफ्फू-चक्कर हो गई, मन गिल्ट से भर रहा था कि मैंने उसकी काबिलयत को उसके इंटर्न होने से कैसे परख लिया? अक्सर मैं ऐसा ही करता हूं बिना सोचे समझे किसी के बारे में भी राय बना लेता हूं। इससे पहले दिमाग और दिल फिर लड़ने लगते, मैं उसके पास गया और थैंक्यू कहा। मन सच में खुश था क्योंकि जितना दीवाना मैं ख़बरों का हूं वो दीवानगी कहीं न कहीं उसमें भी थी। मैंने उससे चाय के लिए पूछा तो उसने मुस्कुराते हुए हामी भर दी। 

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